गुरुवार, 1 नवंबर 2012


                              सरस मेला ....कैथल की कहानी और  "सम्भव" की प्रदर्शन

  ज़िंदगी एक मेला है  और मेला ज़िन्दगी .मेलों के बिना ज़िंदगी अधूरी है और मेले ज़िंदगी की रवानी को बनाए रखते हैं.....सदियों से चले आ रहें हैं मेले. ज़िंदगी की जद्दोजहद के बीच मेल-मिलाप, घूमने - फिरने, खाने - पीने ,रौनक देखने, कला के हुनर देखने, खरीद-फरोख्त , किसिम-किसिम के करतब देखने और न जाने क्या-क्या के लिए लगते रहें हैं मेले...
       आजकल कैथल में लगा "सरस मेला" भी लोगों को अपनी ओर खींच रहा है. जगह-जगह से आये शिल्पकार और उनके बेहतरीन सामानों को खरीदने वालों की जहां भीड़ लगी है तो वहीं  शाम को अलग -अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम एक अलग ही समां बांधते हैं. लेकिन इन सबके बीच जो जगह सबसे ज़्यादा लोगों को खींच रही है वह है 'संभव" सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी- "मैं कैथल हूँ ". कैथल के पौराणिक महत्त्व के स्रोतों को बताती कैथल की कहानी ले जाती है हमें सुदूर अतीत में ..... हड़प्पा काल की बस्ती में हुई खुदाई में मिले  पुरातात्विक स्रोतों को प्रस्तुत करती,  कलायत के प्रतिहार राजाओं के भव्य मंदिर को दर्शाती , रजिया के मज़ार की सैर कराती  यह प्रदर्शनी अट्ठारह सौ सत्तावन में कैथल शहर और आस-पास के गाँवों में धधकी ज्वाला का बयान करते स्वतंत्रता आन्दोलन में कैथल की भूमिका और कैथल में गांधी जी के आगमन का ज़िक्र करती है.. यह विभाजन की पीड़ा को भी बताती है...आज़ादी के बाद यहाँ हुए विकास और विडंबनाओं की चर्चा करते हुए अतीत के सांझेपन को बरकरार रखने की  अपील के साथ यह प्रदर्शनी  सामाजिक बदलाव के लिए सबको अपनी भूमिका निभाने का आह्वान करती है ...  
      प्रस्तुत है प्रदर्शनी और मेले की एक झलक..

अपने शहर..अपने अतीत में खुद को तलाशते लोग 

         
             
        प्रदर्शनी में लोग--कैथल की विरासत को देखते और महसूस करते...        



सांझी विरासत....
दो पीढियां ....कैथल को समझने की कोशिश में....
नन्हीं बेतिया...इतिहास को समझने की कोशिश में.....





अरे, ये क्या है??

मेले में........जादू........


















यह मात्र झलक थी..... हम मिलते रहेंगे.....मेले के और भी रंगों के साथ.....