रविवार, 14 अक्तूबर 2012

मलाला, गजाला और हमारी बबलियाँ


                 

    मलाला , गजाला  और बबली..... इनमे क्या कोई सम्बन्ध है?? ये कैसा शीर्षक ? आज दिमाग गड्ड-मड्ड हो रहा है... पिछले दिनों पाकिस्तानी बच्ची मलाला पर सिर्फ इस बात के लिए हमला हुआ कि वह पढ़ना चाहती थी.(वो समझती है कि वो इक्कीसवीं सदी में है, बेवकूफ बच्ची ...!) आज शाम समाचार देखा कि हरियाणा में पिछले चौंतीस दिनों में उन्नीसवां बलात्कार का मामला फतेहाबाद में हुआ ( ये हिन्दुस्तान है भाई, सरकारी आंकड़ों में कृपया स्वयं सुधार कर लें) और कुछ ही देर पहले बबली के दाह-संस्कार से लौटी... बबली, ये बबली कौन थी ? मैंने उसे देखा भी नहीं था....बल्कि आज ही उसका नाम जाना... कृष्ण, मेरे घर जो बच्चा दूध देने आता है, उसकी बहन...बबली. ब्याह दी गई थी- नहीं-नहीं, आठ साल पहले रिश्तेदारी में, दे दी गई थी.  अंटा-संटा यानि अदला-बदली की परंपरा के तहत. कितना आसान तरीका ...! अदला-बदली... वर ढूँढने, घर, परिवार, जायजाद देखने की ज़हमत भी नहीं उठानी पड़ी. एक खूंटे से दूसरे खूंटे बांधनी ही तो थी . जल गयी बबली, मर गई बबली...इनवर्टर से ! नया तथ्य है, स्टोव या गैस  से बहुओं का जलना तो सुना था.. पर इनवर्टर से मौत, पहली बार सुना. खैर...नब्बे प्रतिशत जली बबली मरते-मरते भी कह गई किसी ने नहीं जलाया मुझे.. मै तो इनवर्टर से जल गई....! बबली के  इनवर्टर से जलने पर भरे-पूरे परिवार में उसे कोई नहीं बचा पाया...! दो दिन अस्पताल में जलने का ज़ख्म बर्दाश्त करती, ससुराल, मायके और पुलिस वालों से जूझती आखिर उसे मुक्ति मिल ही गई....गाँव की बूढ़ी औरतों ने भी बबली की माँ को समझाया, रो न, आज तो उसे मुक्ति मिली है....कितनी शरीफ थी बेचारी. इब तो स्वर्ग पहुंची गई होगी. इन बुज़ुर्ग महिलाओं को खासा अनुभव जो था. ठीक ही कह रहीं थीं वे. बबली नरक से निकल कर स्वर्ग में ही तो गई...वंश चलाने के लिए एक बेटे को छोड़ गई..पता नहीं कब से क्या-क्या झेल रही थी दस साल की शादी.. यह कैसी शादी थी?? बबली...घरवालों की इज्ज़त बचाती रही...रोज़-रोज़ ऑनर-किलिंग होती रही...
   रोज़ ही तो मरती हैं बबलियाँ -रिपोर्टेड या अनरिपोर्टेड". गजाला जावेद को महज़ इसलिए मार दिया गया कि वो गाती थी, मलाला को इसलिये गोली मार दी गयी कि वह पढ़ना चाहती थी, बबली इसलिए इनवर्टर से जल गई क्योंकि वह जीना चाहती थी.
जो वहशीपन और बलात्कार का शिकार हो रहीं हैं वह भी तो जीते-जी मर ही तो रहीं हैं. इन सबका दोष क्या है ? किसने हक दिया उन्हें मारने का? बबलियों का जीना-मरना कोई और तय करता है...शादी-ब्याह कोई और तय करता है....कहीं खाप तो कहीं तालिबान फरमान देते हैं कि लडकियां पढाई न करें, शादी की उम्र घटा दी जाए, या फिर लड़कियों के पहनावे या चाल-चलन को ही बलात्कार का कारण घोषित कर दिया जाता है. किसी राजनीतिक दल को किसी भी बबली से कोई लेना-देना नहीं.
  बबली सिर्फ बबली मानी जाती रही हैं. इन्हें जीता-जागता इंसान मानना शुरू कर दिया जाय तो कोई मलाला नही गोली का शिकार होगी, कोई बबली नही मारी जायेगी, वहशीपन से इंसानियत शर्मसार नही होती रहेगी....लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है.....फिर भी, बदलना तो  पडेगा ही...इंसान की ज़िंदगी का सवाल जो है....
    
                    
     
                     

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