पिछले दिनों गुजरा फल्गु मेला हज़ारों सालों से कैथल की संस्कृति , इतिहास और लोकजीवन का हिस्सा रहा है. मेलों के बिना क्या हम किसी समाज की कल्पना कर सकते हैं? इंसान ने जीवन के साथ अपने संघर्ष में हमेशा जीवन को सुन्दर बनाने की कोशिश की है....मेले ज़िंदगी को खूबसूरत बनाते रहें हैं. ज्यादातर मेलों के पीछे कोई धार्मिक कहानी भले ही रही है , लेकिन वास्तविकता यह है कि मेले जी - तोड़ मेहनत के बाद अपने बाल-बच्चों और परिवार के साथ घर से बाहर निकल कर पूरे समुदाय के साथ मौज- मस्ती और खुशियाँ मनाने का एक बहाना भी रहा है. भोजपुरी के महान लोककवि और गीतकार कैलाश गौतम की लोकप्रिय कविता "अमौसा के मेला" (अमावस्या का मेला) की कुछ पंक्तियाँ आपके लिए प्रस्तुत हैं जो यहाँ बेहद मौजूं है...
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धरम में, करम में, सनल गाँव देखा.
अगल में, बगल में,सगल गाँव देखा,
अमौसा नहाए चलल गाँव देखा.
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फल्गु मेले का इस पूरे इलाके में बहुत ज़्यादा महत्व रहा है. इस इलाके के लोग तो यहाँ पितरों की पूजा और दान के लिए आते ही हैं, ऐसे लोग जो कई पीढी पहले कैथल से किसी दूसरी जगह जाकर बस गए, वे भी यहाँ अवश्य आते हैं.
"कैथलनामा" टीम ने भी फल्गु मेले का आनंद उठाया. अदभुत नज़ारा था. पंजाब से लेकर राजस्थान तक के लोग हज़ारों लोग, बड़े - बूढ़े, औरतें और बच्चों का सैलाब... सारा इलाका कोलाहल में डूबा, धर्म जाति के बंधनों को तोड़ता ...जीवन का भरपूर आनंद उठाता...
कुछ खुशनुमा पलों को हमने कैमरे में कैद किया. प्रस्तुत है आपके लिए एक एल्बम..
इसे कहते हैं जिजीविषा.... राजस्थान
से आयीं दादी ...
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खजाला.... यू.पी. में इसे खाजा कहते हैं. अब मेलों में ही दिखता है. मेले वास्तव में संस्कृति को कितना बचा कर रखते है... और संस्कृति को कौन बचाए रखता है?? आम लोग...सदियों से संस्कृति आम लोगों के कारण ही बची रही
एक दूसरे को संभालती ...दो पीढियां ....चली मेला देखन को...
झूले... इनके बिना मेला पूरा नहीं होता...दिल थाम कर बैठते हैं लोग इस पर...देसी
टेक्नोलोजी, देसी हुनर...
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उदास क्यों है बच्चा...वो भी मेले में ??
पितरों को याद करते.
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प्लास्टिक के खिलौनों ने मिट्टी के खिलौनों की जगह ले ली है...फिर भी खिलौने,
खिलौने हैं ...बच्चों के लिए ज़रूरी. इस बच्चे को भी खिलौने से खेलने की फुर्सत
मिलती होगी क्या ?
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नट-नटी..यह संतुलन बनाने में कितनी मेहनत छिपी है...जिसकी कोई कद्र
नहीं...इन्हें कोई संभाल ले तो ये सोना ले आयें ओलम्पिक में...
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जलेबा...
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और अंत में मौत का कुआं ...जीवन के लिए मौत का कुआं....
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Giant wheel installed in the Fagu Mela is picturized in such a manner that it is resembling London Eye
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