कैथलनामा 'सम्भव' द्वारा संचालित साँझा मंच है. कैथल को सन्दर्भ में रखकर स्थानीय एवं मौखिक इतिहास,सांझी संस्कृति और साहित्य पर व्यापक विमर्श का यह एक छोटा सा प्रयास है.साथ ही हमारी कोशिश रहेगी कि आम नागरिकों की समस्याओं के समाधान की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास भी कियें जाएँ.बुद्धिजीवियो,सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, मीडियाकर्मियों,विद्यार्थियों और जागरूक नागरिकों के सहयोग से इस अभियान को सफल बनाया जा सकता है..ऐसी हमारी उम्मीद है.
बुधवार, 12 सितंबर 2012
हरियाणवी वाद्य-वृन्द
धरती का कोई भी आबाद इलाका ऐसा नही होगा जहां लोगों ने खूबसूरत संस्कृति को जन्म न दिया हो. हज़ारों सालों में “लोक” ने गीत – संगीत, कला - चित्रकला , नाटक – नौटंकी - सांग मुहावरों, लोकोक्तियों , किस्से-कहानियों या फिर त्योहारों को जन्म दिया है. हरियाणा की भी अपनी खेतिहर ज़मीन से उपजी समृद्ध संस्कृति और परम्परा रही है, पर “सांस्कृतिक एलीट” ने हमेशा यह कहा कि There is only one culture in Haryana and that is Agriculture. हरियाणा के एक शख्स पिछले पच्चीस सालों से इस सोच को गलत साबित करने के अभियान में लगे हैं. जी हाँ, वह शख्सियत हैं अनूप लाठर. अनूप लाठर हरियाणा के लिए कोई अनजान व्यक्ति नहीं हैं. हरियाणा में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ज़रूरत को महसूस करते हुए उन्होंने 1985 में “रत्नावली” नाम से कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एक सालाना लोक सांस्कृतिक जलसा शुरू किया . मात्र दो लोक विधाओं के आयोजन से शुरू हुए इस जलसे में प्रस्तुत विधाओं की संख्या आज बढ़ कर पच्चीस हो गयी है और यह सबसे ज्यादा इंतज़ार किये जाना वाला सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा और सांस्कृतिक विभाग में अध्यक्ष श्री लाठर के प्रयास से लोकप्रिय लोक शैलियों का तो रत्नावली महोत्सव में आयोजन होता ही रहा है, लुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी सांस्कृतिक शैलियों को पुनर्जीवित कर अधिक महत्वपूर्ण काम किया गया. उनका सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने इन शैलियों को उस युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बना दिया जो अक्सर फिल्मी संस्कृति के पीछे भागती है . रत्नावली महोत्सव में शामिल होने के लिए तमाम कलाकार साल भर अपनी कला को मांजते हैं. इसे सीखने के लिए वे पारंगत बुजुर्ग कलाकारों के शागिर्द बनते हैं. इस तरह दोनों पीढियां वास्तव में मिल के हरियाणा की लोक संस्कृति को बचा रहीं हैं जिन्हें श्री लाठर का नेतृत्व प्राप्त है.
कैथल में बलजीत सिंह और उनकी टोली अनूप लाठर के काम को आगे बढ़ा रही है.आर.के.एस.डी. कॉलेज की ऑर्केस्ट्रा टीम एक बेहतरीन टीम है जो विभिन्न हरियाणवी साजों को बजाने में माहिर हैं. घड्वा ,ढफ, मंजीरा, ढोलक, एकतारा, दोतारा, नगाड़ा, बैंजो, ताशा , चिमटा जैसे साजों को जब यह मंडली समवेत स्वर में बजाती है तो एक अलग ही समां बन जाता है. पढ़े - लिखे नौजवानों को लोक साज़ बजाते देख दिल को एक सुकून भी मिलता है कि अनूप लाठर जी का प्रयास बेकार नहीं जा रहा है. प्रस्तुत है अनूप लाठर द्वारा निर्देशित हरियाणवी वाद्य-वृन्द की बेजोड़ प्रस्तुति:
हरियाणा की लोक संस्कृति को नौजवान पीढ़ी ज़रूर बचा लेगी. अनूप लाठर को सलाम करते हुए आपके लिए प्रस्तुत है हरियाणवी वाद्य वृन्द जो रत्नावली महोत्सव के लिए अनूप लाठर के निर्देशन में तैयार किया गया :
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mast hai ,shayad is trah se har jagah ke bare me logo ki dharana badle
जवाब देंहटाएंthats great
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