बुधवार, 19 सितंबर 2012

बाबा तोतापुरी : कैथल का अद्वैत दार्शनिक और रामकृष्ण परमहंस का गुरु,

 
      

हरियाणा और  कैथल  शिक्षा, ज्ञान और दर्शन का विशेष केन्द्र रहें हैं. लोगों को यह यकीन नहीं होगा कि कैथल के बाबा लदाना गाँव में उन्नीसवीं  सदी में एक ऐसा दार्शनिक पैदा हुआ जिसके बारे में  बीसवीं सदी में  विश्व  के महानतम  दार्शिनिकों  में से एक , रोमा रोलां  ने बड़े सम्मान के साथ अपने विचार रखे . यह दार्शनिक थे बाबा लदाना के तोतपुरी . वे अद्वैत  दर्शन के महानिर्वाणी अखाड़े के  नागा पंथ से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने लदाना के ही बाबा राजपुरी मठ से शिक्षा पाई थी. 1858 में वे डेरा के मुखिया बने .  भौतिक जगत और माया  को नकार कर वे अंतिम सत्य  की खोज में लगे थे.  अपने प्रश्नों के उत्तर तलाशते उन्होंने वस्त्र भी त्याग दिए जिससे जन के बीच वे नंगता बाबा के नाम से जाने गए. 1861 में सत्य की खोज में  यायावरी करते वे मठ से  निकल पड़े . शास्त्रार्थ करते वे कलकत्ता पहुंचे जहां 1864 में  उनकी  मुलाक़ात सत्य को तलाशते एक और  बेचैन संत  से हुई . वे थे  स्वामी विवेकानंद  के गुरु राम कृष्ण परमहंस .  रोमा रोलां ने कहा है कि  इस मुलाकात ने राम कृष्ण की दार्शनिक सोच को आकार देने में और  जीवन की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की . बाबा तोतापुरी ने  काली की भक्ति में  आसक्त राम कृष्ण को अद्वैत दर्शन के अपने प्रश्नों से झिंझोड़ कर रख दिया. साकार ब्रह्म और काली की भक्ति से वे ध्यान नही हटा पा रहे थे . बाबा तोतापुरी ने परमहंस को द्वैत का रास्ता छोड़ अद्वैत का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया. आत्मसाधना और चिंतन के बाद  उन्होंने अद्वैत दर्शन को अपनाया . वे तोतापुरी के शिष्य बन गए. आध्यात्मिक इतिहास में गुरु और शिष्य की यह मुलाक़ात  अनोखी मानी जाती है क्योंकि जहां शिष्य ने गुरु से अद्वैत दर्शन सीखा तो  गुरु ने अपने  शिष्य से अटूट भक्ति सीखी. दोनों ने परस्पर एक दूसरे से सीखा तो एक दूसरे को दिया भी.
    इस घटना से यह तो साबित होता ही है कि कैथल शहर और इसके आसपास का इलाका एक समय में ज्ञान  और दर्शन के क्षेत्र में बेहद उन्नत था. और यह सब तभी संभव हो पाया क्योंकि कैथल सदियों से  शिक्षा , ज्ञान , दर्शन और संस्कृति का केन्द्र रहा है. यही हमारी धरोहर और विरासत है. हमें इसे जानना है और समझना है  और इसे  संजो कर रखना है.

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