सोमवार, 10 सितंबर 2012

खत प्रियतम के नाम

ख़त लिक्खा खुशखत के साथ, खैर, दुआ, चाहत के साथ । परदेसी प्रियतम के नाम लिखती हूं शिद्दत के साथ । कोई अच्छी खबर नहीं है तुम पढ़ना हिम्मत के साथ । माँ की हालत भी पतली है, बापू की हालत के साथ । देवर धुत्त पड़ा रहता है, जाएगा इस लत के साथ । डिग्री तो लाया है बड़का पढ़ लिख कर मेहनत के साथ । लेकिन अब मिलती हैं सबको नौकरियाँ रिश्वत के साथ । छुटका अब रहता है हरदम, आवारा दलपत के साथ । लाखों ऐब चले आते हैं, एक बुरी आदत के साथ । उसको तो खाना-पीना है, रोज़ बुरी संगत के साथ । मुनिया फस्ट रही बस्ती में, अट्ठासी प्रतिशत के साथ । सोचूं इसकी शादी कर दूँ, लड़का देख बखत के साथ । गली गली में खड़े लफंगे, देखें बदनीयत के साथ । कमला जैसे पगली हो गई, लगती हर हरकत के साथ । काली माँ का भूत था अन्दर, उतरा जो मन्नत के साथ । गंगाराम ने ब्याह दी बेटी, बूढ़े बदसूरत के साथ । रधिया कल कुएँ में कूदी लुटी हुई इज़्ज़त के साथ । बुधवा का सच कौन सुनेगा, हर मुखबर ताकत के साथ । आज इलैक्शन जीत गया फिर दुर्जन सिंह बहुमत के साथ । काले की बहु भाग गयी है, उस गोरे सम्पत के साथ । दयानन्द अब भी लड़ता है, मस्जिद के शौकत के साथ । हैं गठबन्धन की सरकारें, थोड़े से जनमत के साथ । अब तो बस ये क्रिकेट वाले, धन लूटें शौहरत के साथ । घर में मनीआर्डर नहीं आया, कब तक इस गुरबत के साथ । चंद दरारें दीवारों में, मुँह खोले हैं छत के साथ । घर की नीलामी का नोटिस आया है मुहलत के साथ । अब के फसल बहा गयी बारिश, कौन लड़े कुदरत के साथ । घर में लाख झमेले और मैं, लड़ती हर आफत के साथ । हाल पूछने कौन आएगा, सब रिश्ते दौलत के साथ । आवभगत भी न कर पायी, भाई का शरबत के साथ । कैसी हालत है मत पूछो, ज़िंदा हूँ ज़िल्लत के साथ । बिजली, दूध किराने का बिल, भेज रही हूँ खत के साथ । मैं तो मन्दिर में लड़ आई, पत्थर की मूरत के साथ । मर्द गया परदेस न जाने क्या बीती औरत के साथ । तुम मत लापरवाही करना अपनी इस सेहत के साथ । खर्च गुज़ारा कर ही लूंगी मैं ज्यादा बरकत के साथ । अब तो वापिस आ भी जाओ, रोटी है किस्मत के साथ । -गुलशन मदान* *गुलशन मदान कैथल के अत्यंत चर्चित कवि एवं गीतकार हैं

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