सोमवार, 10 सितंबर 2012

दूधिया क्रांति के जनक डा. वर्गीस कुरियन को कैथलनामा का सलाम




देसां में देस हरियाणा जित दूध – दही का खाणा .यह देस दूधिया क्रान्ति यानि श्वेत क्रान्ति के जनक, डा. वर्गीज़ कुरियन को श्रद्धांजलि देता है, उन्हें सलाम करता है. भारत जैसा देश में जहां ‘दूध की नदियां” गुज़रे अतीत की बात बन चुकी थी, डा. कुरियन ने उसे काफी हद तक फिर से हकीकत बनाया. कुरियन जो खुद दूध नहीं पीते थे, केरल के रहने वाले थे, 1949 में गुजरात के “खेड़ा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ” के महाप्रबंधक बने. वे मात्र एक प्रशासक नहीं थे, बल्कि स्वप्नदर्शी थे .पशुपालन जैसे पारंपरिक काम को उन्होंने उद्योग का रूप दिया. उसे एक आंदोलन का रूप दिया. उन्होंने सान्झेपन पर आधारित एक ऐसे सहकारी आंदोलान को जन्म दिया जिसने गुजरात के आणंद जिले का रूप ही बदल दिया. जिसने हज़ारों- हज़ार औरतो का जीवन बदल दिया. जिसने विकास और उन्नति छन कर नीचे तक कैसे जाती है, इसे कर दिखाया. कुरियन ने 1955 में अमूल ब्रांड को बाज़ार अर्थव्यवस्था से जोड़ कर दुग्ध-प्रोडक्ट को पूरे देश में पहुंचा दिया. उनके ही प्रयास से दुनिया में पहली बार भैंस और गाय के दूध से पाउडर बनाया गया. तमाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजे गए कुरियन किसी पुरस्कार के मोहताज़ नहीं थे. सहकारी आंदोलन से जुडी औरतों और रोज़गार पाए लाखों लोगों के खुशी से दमकते चेहरे और मुस्कान ही उनके वास्तविक पुरस्कार थे. मंथन फिल्म में इसे बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है. डा कुरियन को याद करते हुए बराबर यह ख़याल आता है कि हम हरियाणा जैसे इलाके में ऐसा कोई सहकारी आंदोलन क्यों नही शुरू कर पाए. ऐसा प्रदेश जहां पशुपालन और दुग्ध – उद्योग सदियों पुराना पेशा रहा है, जहां घर-घर में पशु हैं, जहां हज़ारों औरतें दुग्ध – उत्पादन में लगी हैं , सहकार का रूप देते ही उन्हें रोज़गार मिल सकेगा और उनके श्रम का सही आर्थिक आकलन भी होगा. यहाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने पैर पसार रहीं हैं जबकि सहकार - आंदोलन के ज़रिये पूरे इलाके में समृद्धि लायी जा सकती है. यहाँ करनाल में राष्ट्रीय डेरी इंस्टिट्यूट है. आश्चर्य होता है की आज तक किसी ने कोई पहल क्यों नही की? भारत दुनिया में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला देश है .फिर भी यहाँ बड़े तो क्या बच्चों तक को दूध क्यों नहीं मिल पाता ? वर्गीज़ को सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि इस इलाके को डा. वर्गीज़ के सपनों से और भी आगे ले जाया जाए. जहाँ न सिर्फ हरियाणा में बल्कि पूरे देश के बच्चों को दूध मयस्सर हो सके.. डा.आशु वर्मा

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