रविवार, 9 सितंबर 2012

वारिस शाह की हीर की महक है कैथल की मिट्टी में भी

कैथल, हीर, वारिस शाह और अमृता प्रीतम ...इनमें क्या सम्बन्ध है? इनमें क्या सांझा है? इनमें सांझा यह है कि ये पंजाब की ज़मीन से पैदा हुए हैं. तीनों ही मोहब्बत और इश्क में पगे रूहानी किस्म की शख्सियत के मालिक हैं. हीर ने इश्क के लिए अपनी जान दी , वारिस शाह ने उसके दर्द को सूफियाना ऊंचाइयों तक पहुंचाया तो अमृता प्रीतम ने हीर, इश्क और पंजाब की सांझी तहजीब और तारीख पर सियासी खंज़र के घोंपे जाने के दर्द को बिल्कुल नया फलक और आयाम दिया. उनकी नज़्म में बयान दर्द कैथल के बाशिंदों ने भी जिया. आजादी के पहले कैथल पंजाब का हिस्सा था. यह इलाका सिर्फ एक भौगोलिक इलाका नहीं था बल्कि अलग –अलग कौमों , तहजीबों, मज़हब, बोलियों, सूफियों , बेपनाह मोहब्बत, दर्द, तकलीफों और गर्मजोशी को समेटे एक अलग ही शख्सियत रहा है. ऎसी ही शख्सियत कैथल की भी रही है. लेकिन तकसीम और सियासती फरमानों ने मंज़र बदल दिया . पंजाब के साथ कैथल भी रोया . हिंदू- मुस्लिम गंगा- जमुनी संस्कृति वाला कैथल का इलाका उजड़ने लगा . एक सरहद बना दी गई और उसके “इधर” और “उधर” आना-जाना शुरू हुआ. कैथल से भी हज़ारों लोग बाप-दादाओं की पाक ज़मीन को छोड़, माल – असबाब गाड़ियों में लादे , कांख में गठरी दबाये, अपनी औरतों को लुटते देख ,खून के आंसू पीते “उधर” गए और ऐसे हजारो लोग यहाँ आये. रिफ्यूजी कैम्प बनने लगे .कैथल शहर का हर दूसरा और तीसरा बाशिंदा “रिफ्यूजी” बन कर आया. आज भी यहाँ के गाँवों में अपने मूल बाशिंदों को याद करती न जाने कितनी हवेलियाँ खँडहर बन चुकी हैं. हजारों बाशिंदों के ख्यालों में अभी भी अपने वालिदों या अपने बचपन के घरों, गलियों , मोहल्लों , और बाज़ारों को देखने , उनकी दीवारों को एक बार छू लेने, किसी पुराने अमरुद के दरख़्त पर लटक जाने और वहाँ की हवाओं को फेफड़ों में सोख लेने की कशिश बाक़ी है. सैंतालीस में आये बच्चों के चेहरों पर झुर्रियाँ आ गयीं हैं . लेकिन तमाम तकलीफों के बावजूद उन सब ने पंजाब की जिजीविषा , हिम्मत, मोहब्बत ,तहजीब और लगन को इस शहर की हवाओं में घोल सदियों पुराने इस शहर को और भी खूबसूरत बना दिया है. उन्होंने अपनी मेहनत से उद्योग , खेती ,व्यापार से लेकर साहित्य, शिक्षा और कला तक अपनी पहचान और जगह बनाई है. यह शहर हौसले वाला शहर है. और इसे यह हौसला दिया है उजड़ कर आये लोगों ने. यह शहर उन्हें सलाम करता है. यह शहर हीर, वारिस शाह, अमृता प्रीतम और उनकी मोहब्बत को सलाम करता है. यहाँ से उजड कर वहां बसे और वहां से उजड कर यहाँ बसे लोगों के लिए प्रस्तुत है अमृता प्रीतम की यह नज़्म जो उन्होंने विभाजन के बाद लिखी थी..इस नज़्म में उन्होंने वारिस शाह को संबोधित करते हुए कहा है कि जब पंजाब में हीर नाम की एक बेटी रोई थी तो उन्होंने उसके दर्द को संगीत में ढालकर लोकगीत बना दिया...आज जब विभाजन के समय लाखो बेटियां रो-चीख रहीं हैं तो वो बुला रही है वारिस शाह को और पूछ रहीं हैं कि कहाँ है उनके गीत ...सुनिए ये नज़्म खुद अमृता प्रीतम की आवाज़ में: (प्ले बटन पर क्लिक करें, अगर आपका कनेक्शन स्लो है तो 'बफर' होने में कुछ क्षण लग सकते हैं, कृपया प्रतीक्षा करें) -आशु वर्मा

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