रविवार, 9 सितंबर 2012

कविताओं में कौंधती नाटक की अर्थछवियां

प्रो.अमृतलाल मदान - कैथल की जानी-मानी शख्सियत- कवि,नाटककार और इससे भी बढ़कर एक बेहद प्यारे इंसान. डा. मदान ने अपना पूरा जीवन साहित्य सृजन में लगाया है. वे सदैव साहित्य के नए अंकुरों को सींचते रहे हैं.  उनके संयोजन में होने वाली साहित्य सभा की मासिक गोष्ठियों ने  नए-नए रचनाकारों को साहित्यिक अभिव्यक्ति का मंच प्रदान किया है.  हाल ही में उनका नया कविता संग्रह 'बूँद-बूँद अहसास' आया था. प्रस्तुत है डा. सुभाष रस्तोगी द्वारा इस संग्रह की समीक्षा:

साहित्यकार अमृतलाल मदान कवि, कथाकार, उपन्यासकार और नाटककार के रूप में जाने-माने हैं। लेकिन उनके बारे में यह कहना काफी मुश्किल है कि वे मुख्यत: कवि हैं, कथाकार हैं अथवा नाटककार हैं। वैसे तो रचना कागज पर उतरने से पहले अपनी विधा का चुनाव स्वयं कर लेती है लेकिन फिर भी अमृतलाल मदान जैसा प्रत्येक रचनाकार जहाज के पंछी की तरह बार-बार अपनी मुख्य विधा में लौटता ही है। अमृतलाल मदान के सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘बूंद-बूंद अहसास’ जिसमें उनकी कुल 71 कविताएं संकलित हैं, की मार्फत यदि हम उनके रचनात्मक कर्म के परिदृश्य में झांकें तो मुख्यत: वे एक नाटककार के रूप में ही उभरकर सामने आते हैं क्योंकि उनकी कविताओं में बार-बार नाटक की अर्थछवियां कौंधती हैं। इन्हीं अर्थछवियों ने उनकी कविताओं को न केवल अद्भुत और अप्रतिम चित्रात्मकता प्रदान की है, बल्कि उनकी अर्थवत्ता को भी बढ़ा दिया है।
अमृतलाल मदान ने पटियाला के हार्ट इंस्टीच्यूट में मृत्यु शैया पर पड़े-पड़े खुद से वादा किया था कि यदि बच गया तो काव्य संग्रह छपवाकर पुनर्जन्म का उत्सव मनाऊंगा। यह काव्य संग्रह उनके खुद को ‘नायाब तोहफे’ के रूप में सामने आया है।
‘डा. अर्जुन-श्रीकृष्ण संवाद’, ‘कलंक’ और ‘मैं और मेरा साया’ संग्रह की कुछ ऐसी उल्लेखनीय कविताएं हैं जिनमें मदान का रंग-शिल्प अत्यंत मुखर हो उठा है तथा संग्रह की पहली कविता ‘डा. अर्जुन-श्रीकृष्ण संवाद’ अपनी बनावट और बुनावट में एक लघु काव्य नाटक का पूरा परिप्रेक्ष्य उपस्थित करती है। महाकाल की सत्ता के समक्ष मनुष्य की क्षण भंगुरता, लेकिन उसके अथक जीवट का रूपक रचती यह कविता मदान के रंग-शिल्प का एक आख्यान प्रतीत होती है।
‘चवन्नी बदनाम हुई’, ‘संकट रिश्तों की पार्किंग का’, ‘मेरे दो मित्र’, ‘तामस दूत’ तथा ‘बदलती हवाओं में’ कवि का केनवास अत्यंत व्यापक है, परंतु अपने कथन की वक्रता से मुख्यत: ये कविताएं जिस तरह से मानवीय रिश्तों में बाजार के दखल तथा बाजारीकरण के अभिशाप के कारण आदमी की बदलती फितरत के प्रति हमें चौकस करती हैं, वह कबिले गौर है -
‘दरअसल / बाजार का मुंह भी / सुरसा का मुंह है / हड़प जाता है उठ-उठकर / सभी चिल्लरों, छुट्टों, छुटभैयों को / पर चूमता है उड़-उड़ कर / समुद्र पार जाते / डालर-पौण्ड-येन / के भांडों, नक्कालों / बेसुरे नचैयों को।’ (पृ. 16)
‘हम रिफ्यूजी-एक’ व ‘हम रिफ्यूजी-दो’ पाठक की चेतना में इसलिए देर तक ठहरने वाली कविताएं हैं क्योंकि एक स्तर पर यह सवाल उठाती हैं कि विभाजन के संताप से दर-ब-दर हुए रिफ्यूजी न तो उग्रवादी बने, न चरमपंथी, न ही आतंकी, न आरक्षण मांगा और न ही धरने लगाये, लेकिन जो तीन-तीन पीढिय़ों से सुस्थापित हैं वे क्यों हथियार उठाते हैं? देखें ये पंक्तियां जो हमें अपने गिरेबान में झांकने का मौका देती हैं :
‘हम तो चलो विस्थापित सही, ‘रिफ्यूजी’ सही / पर जो पहले ही स्थापित हैं / वे क्यों हथियार उठाते हैं / आरक्षण मांगते हैं / रास्ते रोकते हैं / कैसी राजनीति खेलते हैं, चलाते हैं? / किसका शिकार बनते हैं? / किसको शिकार बनाते हैं?’ (पृ. 22)
इसी शृंखला की दूसरी कविता ‘हम रिफ्यूजी-दो’ संवेदना का एक दूसरा ही फलक उजागर करती है :
‘जब हुआ हमारा वतन निकाला / किसने मां की तरह संभाला / रक्षण किया बिना आरक्षण / किसने मुंह में दिया निवाला? / यह धरती थी हरियाणा की / सीधे सादे लोग लुगाई / ऐसा लगा ज्यों हम बिछुड़ों को / आकर मिले सहोदर भाई।’ (पृ. 114)
‘बिल्ली के बच्चे’, ‘बच्चो याद बहुत आते हो’, ‘आओ बच्चो घर आओ’ माता-पिता के अकेलेपन की अन्तव्र्यथा को उजागर करती हैं तो ‘रसोई को प्रणाम-एक’ तथा ‘रसोई को प्रणाम-दो’ जैसी कविताएं पाठक को घर की सोंधी महक के रू-ब-रू लाकर खड़ा कर देती हैं। ‘कौन थी वह’, ‘डायनासोर’, ‘दिल’, ‘रामजी के गांवों में’, ‘पहाड़ी बिजूका’, ‘सांझापन’, ‘पनीर और प्याज’, ‘सोचा था’ तथा ‘प्रेमी जोड़े तुझे सलाम’ भी संग्रह की उल्लेखनीय कविताएं हैं जिनमें अमृतलाल मदान एक आत्मसजग कवि के रूप में सामने आये हैं। ये कविताएं यह भी साबित करती हैं कि वे अपने अर्जित मुहावरे में अपनी बात बखूबी कहना जानते हैं। ‘रंगमार्ग’, ‘पीला पत्ता’ व ‘भव्य और दिव्य’ जैसी कविताएं अपना एक अलग प्रतिसंसार रचती प्रतीत होती हैं। समग्रत: अमृतलाल मदान की कविताएं जीवन का एक व्यापक परिदृश्य उपस्थित करती हैं और अपने रंग-शिल्प की वजह से ये कविताएं अलग भी नजर आती हैं।
०पुस्तक : बूंद-बूंद अहसास ०लेखक : अमृतलाल मदान ०प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, डीसी निवास के सामने, करनाल रोड, कैथल-136027 (हरियाणा) ०पृष्ठ संख्या : 136 ०मूल्य : रुपये 200/-.

(समीक्षा दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें