28 सितम्बर, यानि भगत
सिंह . भगत सिंह यानि हिन्दुस्तान का सबसे अज़ीम बेटा... इस बेटे का जन्मदिन
हिन्दुस्तान भर में मनाया गया और आज ही खबर मिली कि पाकिस्तान में भी जहां लाहौर
में पुरानी लाहौर जेल थी, जहाँ भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उस जगह को “भगत सिंह चौक” का नाम देकर उनकी शहादत को सलाम
किया गया. 27 सितम्बर से ही देश के गाँवों, कस्बों, शहरों, स्कूलों,
और सामाजिक संगठनों के द्वारा भगत सिंह के विचारों और जज्बों को याद करते हुए पढ़े
– लिखे और गाँव के धुर अनपढ़ लोगों ने भी भगत सिंह को याद किया.
हमने भी “संभव’ और “प्रेमचंद पुस्तकालय” की ओर
से कैथल के गाँव तितरम में 26 से लेकर 30 सितम्बर तक बिलकुल
अलग – अलग तरह के कार्यक्रम किये.
26 सितम्बर को “संभव” के
कार्यकर्ताओं, समर्थकों और चाहने वालों ने भगत सिंह की पूरी विचार यात्रा और काम
करने के तरीकों में समय के साथ आये बदलावों पर बातचीत की . हमने जानने की कोशिश की
कि आखिर देश के प्रति मोहब्बत का वो कौन सा जज्बा था जिसने अट्ठारह- उन्नीस साल के
एक नौजवान को चुपचाप अपने पिता को एक ख़त लिख कर अपना घर – बार छोड़ देश के लिए कुर्बान
होने के लिए प्रेरित किया. “नौजवान भारत सभा” “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी” और “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” के गठन
और भगत सिंह के विचारों के क्रमशः साफ़ होते जाने, असेम्बली में बम फेंकने और फांसी
के लिए जिद करने के पीछे उनके तर्कों पर हमने चर्चा की. हमने पाया की देश, समाज,
राजनीति, भाषा, साम्प्रदायिकता, धर्म, साहित्य, नौजवानियत, मोहब्बत, रूमानियत और न
जाने क्या - क्या....शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिस पर भगत सिंह ने सोचा और लिखा ना
हो. बातचीत में लोगो ने जोर दिया कि आज हर गाँव क्या बल्कि हर इंसान को भगत सिंह बनने
की ज़रुरत है क्योंकि आज भी वे समस्याएँ, शोषण और भेद- भाव मौजूद हैं जिन्हें भगत
सिंह ख़त्म करना चाहते थे. कार्यक्रम में भगत सिंह के कुछ लेख भी पढ़े गए और
आंगनवाडी यूनियन लीडर संतरों ने भगत सिंह पर एक रागिनी सुनायी.
हमें लगा कि छोटे-छोटे भगत सिंह पैदा करने का एक तरीका यह हो सकता है कि, हम अपने आसपास के बच्चों से भगत सिंह के बारे में बातें करें. आखिर जलियाँ वाला बाग़ की मिट्टी उठाकर गोरी सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम खाने वाला एक नन्हां भगत ही तो था.....हमने तितरम के ‘प्रेमचंद पुस्तकालय” में गाँव के बच्चों को बातचीत और देशभक्ति के गीत गाने के लिए आमंत्रित किया. हमे लगा था कि गवैया किस्म के थोड़े से बच्चे आ जायेंगे . लेकिन यहाँ तो लाइब्रेरी का हॉल खचाखच भर गया. हॉल भर गया तो कई खिडकियों पर लटक गए . कुछ ने दरवाजों में पिरामिडनुमा दर्शक – दीर्घा ही बना डाली तो कुछ मेजों पर ही चढ़ गए....बच्चों का ऐसा सुहाना कोलाहल की मन झूम उठा . दो साल की बच्ची से लेकर पंद्रह साल के बच्चे तक.... कुछ नौजवान अपने आप ही इस बाल- तूफ़ान को अनुशासित करने और उन्हें बैठाने में लग गए. सब गाने को तैयार....किसे गंवाएं और किसे न... खैर, सबने मिलकर भी गाया और जो ख़ास तैयारी कर के आये थे उन्हें ख़ास मौक़ा भी दिया गया. उन्हें भगत सिंह की कहानी भी सुनायी गई.
हमें लगा कि छोटे-छोटे भगत सिंह पैदा करने का एक तरीका यह हो सकता है कि, हम अपने आसपास के बच्चों से भगत सिंह के बारे में बातें करें. आखिर जलियाँ वाला बाग़ की मिट्टी उठाकर गोरी सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम खाने वाला एक नन्हां भगत ही तो था.....हमने तितरम के ‘प्रेमचंद पुस्तकालय” में गाँव के बच्चों को बातचीत और देशभक्ति के गीत गाने के लिए आमंत्रित किया. हमे लगा था कि गवैया किस्म के थोड़े से बच्चे आ जायेंगे . लेकिन यहाँ तो लाइब्रेरी का हॉल खचाखच भर गया. हॉल भर गया तो कई खिडकियों पर लटक गए . कुछ ने दरवाजों में पिरामिडनुमा दर्शक – दीर्घा ही बना डाली तो कुछ मेजों पर ही चढ़ गए....बच्चों का ऐसा सुहाना कोलाहल की मन झूम उठा . दो साल की बच्ची से लेकर पंद्रह साल के बच्चे तक.... कुछ नौजवान अपने आप ही इस बाल- तूफ़ान को अनुशासित करने और उन्हें बैठाने में लग गए. सब गाने को तैयार....किसे गंवाएं और किसे न... खैर, सबने मिलकर भी गाया और जो ख़ास तैयारी कर के आये थे उन्हें ख़ास मौक़ा भी दिया गया. उन्हें भगत सिंह की कहानी भी सुनायी गई.
इस कार्यक्रम के दौरान हमे लगा कि शहर की तुलना
में गाँवों के बच्चे भगत सिंह के बारे में ज़्यादा जानते हैं... शायद इसमें गाँव के
पुरानी परम्परा के आदर्शवादी मास्टरों का योगदान है.
हमें लगा कि निश्छल और उत्साही बच्चों में
ही देश के लिए मोहब्बत का जज्बा भरना शुरू कर देना चाहिए. उन्हें हम अपने हिसाब से
ढाल सकते हैं. एक बेहतर इंसान बना सकते हैं. खेल, गीत, फिल्म, कहानियों, नाटक या
फिर बाल - कार्यशालाओं के ज़रिये बिना दबाव डाले उनमें वैज्ञानिक समझ और विचार
विकसित किये जा सकते हैं.
इसी क्रम में हमने तीसरा कार्यक्रम 30 सितम्बर को तितरम की दलित बस्ती में किया. कितने
शर्म की बात है कि इंसान और गाँव “अगड़े” और “पिछड़े” में बंटे हुए हैं. हर गाँव
में एक “दक्खिन टोला” होता है जैसे अंग्रेजों के समय “व्हाइट टाउन” और “ब्लैक टाउन”
हुआ करते थे. ब्लैक टाउन तो गंदगी भरे,
भीडभाड़ वाले और उपेक्षित होते थे...दलित बस्ती, यानि दक्खिन टोले भी ऐसे ही होते
हैं. यहाँ उपेक्षित, सदियों से दबाये गए, भेदभाव के शिकार, कम पढ़े लिखे बेरोजगार
किस्म के लोग रहते हैं जो छोटा मोटा काम कर लेते हैं. लेकिन हमने पाया कि ये अपनी
बेटियों से मोहब्बत करतें हैं. लेकिन गरीबी ,पिछड़ेपन और अशिक्षा के कारण उन्हें
पढ़ा नहीं पाते. तितरम और ‘संभव” के हमारे कार्यक्रमों में भी उनकी भागीदारी सामाजिक
ताने-बाने के कारण सीमित ही रही है. इसी दूरी को पाटने के लिए हमने 30 सितम्बर को इस बस्ती में एक बैठक की जिसमें ऎसी लड़कियों को पढ़ाने की योजना बनाई जिन्होंने
गरीबी या किन्हीं और वजहों से अपनी पढाई छोड़ दी है. हमारी सभा में बीच में ही पढाई
छोड़ चुके forced बेरोजगार
भी अपनी पहलकदमी से आ गए.
इस कार्यक्रम के दौरान हमें लगा की हर
तरफ एक बेचैनी , एक खालीपन , एक कसमसाहट और गुस्सा है. बस ज़रुरत है उसे एक सही
दिशा और एक सही रास्ता देने की . कालजयी
नायकों की प्रेरणा से नए नायक – नायिकाएं पैदा करने की. हमारा यही प्रयास रहा है.
यही है हमारा तरीका भगत सिंह के प्रति हमारी मोहब्बत दीवानगी दिखाने और उन्हें सलाम करने का....
(कार्यक्रम का एलबम हम जल्दी ही पोस्ट करेंगे )
(कार्यक्रम का एलबम हम जल्दी ही पोस्ट करेंगे )