काफी समय से
अखबारों में कैथल जिले में फैले डेंगू , जापानी बुखार और मलेरिया से मरने वालों की
ख़बरें आ रहीं हैं. जिले में संदिग्ध बुखार से अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है. जब कैथल जिले में जपानी बुखार की टेस्टिंग
सुविधा है ही नही तो कैसे कहा जा सकता है कि जिले में और भी जो मौतें हुई हैं वह जापानी बुखार से नहीं हुई हैं... आखिर
कितने लोग शहर आकर अपना इलाज करा पाते हैं
? कितने आश्चर्य की बात है की मच्छरों से निजात पाने के लिए फॉगिंग में इस्तेमाल
होने वाली दवा तक का इंतजाम नही हो पाया है...क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि किसी
तरह अपने परिवार का गुजर – बसर करने वाले लोग महंगे होते इस समय में रोज हिट जैसी मच्छर मार दवाइयों को खरीद पाते
हैं ? पिछले साल इन बीमारियों से लगभग एक
दर्जन मौतें हुई थीं. यह तो सिर्फ सरकारी आंकड़ा है.... सच पता नहीं क्या हो...एक
साल में जनता ने अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई का पता नहीं कितना हिस्सा सरकार को
दिया है....पिछले एक साल में कुछ लोगों के खातों में जमा राशि में शून्य की संख्या
इतनी बढ़ गयी है की उन्हें गिनने में आम आदमी का दिमाग गड्डमड्ड होने लगता है. देश
में धन की कमी नहीं है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में ये मामूली सुविधाएँ भी
लोगों को नहीं मिल पा रहीं हैं. बेरोजगारों की फ़ौज के बावजूद आदमी की जान से जुड़े इतने महत्वपूर्ण महकमे में कर्मचारियों
की संख्या इतनी कम है की योजनाओं को ठीक
से अंजाम भी नहीं दिया जा पाता. अधिकारियों का कहना है कि इस साल डेंगू और जापानी
बुखार के मच्छरों को मारने के लिए फॉगिंग में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का टेंडर ही
देर से हुआ...क्या ही अच्छा होता की ये अधिकारी टेंडर में विलम्ब की सूचना यमदूत
को भी भेज देते ताकि वे असमय मौत देने के पाप के भागीदार तो नहीं बनते.
डेंगू और
जापानी बुखार पिछले सात - आठ से सुनी जाने वाली बीमारियाँ हैं...ये नए ज़माने की ,
बदलते आर्थिक - सामाजिक परिवेश की , नए किस्म के औद्योगिक कचरे के कारण पनपने वाली
और सरकारों के बेगाने होते जाने वाले वक़्त की बीमारियाँ हैं.... इनसे सामूहिक और
सार्वजनिक तौर पर ही निबटा जा सकता है. संवेदनशील सरकारें ही इनसे निपट सकती हैं.
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